अगर आप स्टॉक मार्केट में निवेश करते है तो आपने CORPORATE ACTION के बारे में तो सुना ही होगा। लेकिन ज्यादातर लोगों को CORPORATE ACTION कि समझ नहीं होती है जिससे वो यह पता नहीं कर पाते कि कंपनी किसी विशेष तरह के CORPORATE ACTION का निर्णय क्यों लेती है ?
आइए जानते है कि CORPORATE ACTION क्या होता है और यह कितने तरीके का होता है । और इन CORPORATE ACTION से कैसे पता लगाए कि कंपनी की वित्तीय स्वास्थ्य कैसा है ? और उस कंपनी के स्टॉक खरीदने चाहिए या बेच देने चाहिए ?
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Corporate Action क्या होता है ?
Corporate Action किसी कंपनी द्वारा शुरू की गई एक निर्णय होता है जो उस कंपनी द्वारा जारी की गई प्रतिभूतियों (Equity or Debt) को प्रभावित करती है। CORPORATE ACTION को कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के सहमति द्वारा ही लाया जा सकता है।
Corporate Actions को अक्सर कंपनी के शेयरधारकों और निदेशक मंडल (Board of Directors) द्वारा अनुमोदित किया जाता है ।
Corporate Actions कितने तरह के होते है ?
आमतौर पर कॉमपनिया जो भी मुनाफा होता है उसको बिजनस को बढ़ाने में लगाती है ।
- डिविडेंड (Dividends)
- बोनस इश्यू (Bonus Issue)
- स्टॉक स्प्लिट (Stock Split)
- राइट्स इश्यू (Right Issue)
- शेयर बाय बैक (Buyback of Shares)
आगे जानते हैं इन सभी Corporate Actions के बारे में संक्षेप में जानते है।
डिविडेंड (Dividends)
कंपनी को जब बिजनस में फायदा होता है और कंपनी उस मुनाफे को शेयरधारकों में बाँटा जाता है तब इसको ही डिविडेंड (Dividends) कहते है ।
लेकिन ध्यान देने वाली बात यह भी है कि किसी भी कंपनी को फायदा हो तो यह जरूरी नहीं कि वह डिविडेंड (Dividends) जरूर बाटें क्योंकि ज़्यादातर कंपनी अपने मुनाफे को नए प्रोजेक्ट मे लगाती है जिससे कि वह मार्केट में बेहतर स्थिति में पहुच जाएं ।
इसके साथ ही कई बार ऐसा भी होता है कि कंपनी कोई भी मुनाफा नहीं कमाती है और उसके बाद बहुत सारा नकद पड़ा है तो उस दशा में भी कंपनी डिविडेंड (Dividends) बाटती है ।
डिविडेंड (Dividends) को हमेशा शेयर के फेस वैल्यू के आधार पर मापा जाता है । उदाहरण के लिए अगर कंपनी 10 रुपये डिविडेंड (Dividends) दे रही है और कंपनी की फेस वैल्यू 20 रुपये की है यानी कंपनी ने 50% का डिविडेंड दिया ।
डिविडेंड % = (डिविडेन्ड वैल्यू / फेस वैल्यू ) * 100
डिविडेंड (Dividends) देने का फैसला Annual General Meeting (AGM) में लिया जाता है जहां पर सभी डायरेक्टर मिलते है । चूंकि शेयरों के ट्रैड हमेशा चलते रहते है ऐसे में यह पता लगाना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि किसको डिविडेंड (Dividends) दे और किसको नहीं दिया जाए ।
इसको प्रक्रिया को सरल करने के लिए कंपनी के बोर्ड मीटिंग में कुछ महत्वपूर्ण दिनांक की भी घोषणा की जाती है जो कि निमन्वत है :
डिविडेंड डेक्लरेशन डेट (Dividend Declaration Date): इस दिन को AGM होती है जिसमे डिविडेंड देने का फैसला लिया जाता है।
रिकॉर्ड डेट (Record Date): इस डेट पर कॉम्पनी के पास जीतने भी शेयर धारक होते है कंपनी उनको डिविडेन्ड देती है और ज़्यादार देखा गया है कि Dividend Declaration Date और Record Date के बीच में 30 दिन का अंतर होता है ।
एक्स डिविडेंड डेट (Ex Date/ Ex Dividend Date): ये आमतौर पर रिकॉर्ड डेट से दो कारोबारी दिन पहले का होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भारत में T+2 के आधार पर यानी सौदे के दो दिन बाद सेटेलमेंट होता है। तो अगर आपको डिविडेंड चाहिए तो आपको शेयर एक्स डिविडेंड डेट के पहले खरीदना होता है।
डिविडेंड पे आउट डे (Dividend Payout Date): इस दिन शेयरधारकों को डिविडेंड का भुगतान किया जाता है।
कम डिविडेंड (Cum Dividend): एक्स डिविडेंड डेट तक शेयरों को कम डिविडेंड (Cum Dividend) कहा जाता है।
बोनस शेयर(Bonus Issue)
जिस प्रकार डिविडेन्ड के मामले में कंपनी अपने शेयरधारकों को रुपये बाटती है लेकिन जब कंपनी अपने शेयरधारकों को Bonus Issue करती है तो उसमे मौजूदा शेयरधारकों को मुफ़्त में शेयर मिलते है ।
बोनस शेयर(Bonus Issue) को एक खास अनुपात में दिया जाता है जैसे 2:1, 1:1 या 4:3
उदाहरण के लिए अगर कोई कंपनी ने 2:1 के अनुपात में बोनस शेयर(Bonus Issue) दिए है तब मौजूद शेयरधारको को हर एक शेयर के साथ 2 और शेयर दिए जाएंगे।
अगर आपके पास किसी इंफ़ोसिस के 100 शेयर है और इंफ़ोसिस 2:1 के अनुपात में बोनस शेयर देती है तब आपको 200 अतिरिक्त शेयर मिल जाएंगे और आपके पास कुल 300 शेयर हो जाएंगे।
ध्यान देने वाली बात यह है कि बोनस शेयर के बाद आपके निवेश की कीमत मे कोई वृद्धि नहीं होती है ।
स्टॉक स्प्लिट (Stock Split)
स्टॉक स्प्लीट में एक शेयर कई शेयर मे बट जाता है लेकिन इससे स्टॉक के निवेश कि कीमतों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती है और स्टॉक के मार्केट कैपिटलिज़ैशन में भी बढ़ोत्तरी नही होती है।
लेकिन स्टॉक के फेस वैल्यू पर असर पड़ता है । स्टॉक स्प्लीट भी बोनस शेयर के जैसे रैसियो में होता है ।
उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी की फेस वैल्यू 10 रुपये है और इसका स्टॉक 1:2 के रेसियों में स्प्लीट होता है तो उस स्टॉक की फेस वैल्यू 5 रुपये हो जाती है और आपके 100 शेयर स्प्लीट के बाद 200 शेयर बन जाते है ।
राइट्स इश्यू (Rights issue)
जिस प्रकार आईपीओ से कंपनी नए शेयरधारकों से निवेश इकठ्ठा करती है थीक उसी प्रकार जब कंपनी अपने मौजूद शेयरधारकों के जरिए पूंजी इकठ्ठा करने के लिए राइट्स इश्यू (Rights issue) का सहारा लेते है।
कंपनी राइट्स इश्यू (Rights issue) अपने मौजूदा शेयर धारकों के लिए एक खास अनुपात में ले आती है।
उदाहरण के तौर पर अगर कंपनी 1:4 के अनुपात में राइट्स इश्यू लाती है तो इसका मतलब होता है कि अगर आपके पास 4 शेयर हैं तो आप एक और शेयर खरीद सकतें हैं।
राइट्स इश्यू में शेयर के कंपनी के शेयर मार्केट रेट से कम पर मिलते है लेकिन आपको Rights issue के लिए तभी जाना चाहिए जब आप कंपनी के भविष्य से संतुष्ट है।
इसके साथ साथ यह भी देखा गया है कि राइट्स इश्यू के आते ही मार्केट में स्टॉक के रेट गिरते है और कभी कभी राइट्स इश्यू रेट से भी कम हो जाता है ऐसे में राइट्स इशू के वजाय मार्केट से खरीदना ज्यादा अच्छा होता है ।
Buyback of shares
Buyback में कंपनी अपने शेयर खुद खरीदती है और इस तरीके से कंपनी अपने स्टॉक में निवेश करती है । Buyback के बाद मार्केट में कंपनी के शेयर कम हो जाते है । इससे यह पता चलता है कि कंपनी अपने बिजनस के प्रति सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास को दिखाता है ।
Share Buyback के कारण :
- प्रति शेयर मुनाफा ज्यादा बढ़ाना
- कंपनी में प्रमोटर का हिस्सा बढ़ाना
- किसी थर्ड पार्टी के द्वारा टेक ओवर यानी कब्जा करने से बचना
- कंपनी के प्रति प्रमोटर के आत्मविश्वास को दिखाना
- शेयर कीमत में आ रही गिरावट को रोकना
स्टॉक रेट पर Corporate Actions का प्रभाव
कंपनी के द्वारा corporate actions के कारण स्टॉक रेट पर काफी असर पड़ता है । कुछ Corporate Actions के कारण स्टॉक के Fundamental Value मे भी परिवर्तन आ जाता है।
उदाहरण के लिए जब मार्केट में स्टॉक के कीमतों में गिरावट आ रही होती है तब कंपनी अपने स्टॉक में Buyback ले आती है जिससे यह पता चलता है कि कंपनी अपने बिजनस के प्रति सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास को दर्शाता है।