चलिए देखते है कि रेगुलर और डायरेक्ट फ़ंड में क्या अंतर होता है ? (Difference between Direct Fund and Regular Fund) । बाज़ार में हर एक म्यूचूअल फ़ंड के दो तरीक़े से ख़रीद सकते है – एक रेगुलर फ़ंड और एक डायरेक्ट फ़ंड ।तो इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आख़िर इन दोनो में अंतर क्या है ? कौन सा बेहतर है ? और क्यों बेहतर है ?
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रेगुलर फ़ंड (Regular Fund)
इसमें आप म्यूचूअल फ़ंड को असेट मैनेजमेंट कम्पनी से एक ब्रोकर के ज़रिए ख़रीदते है और उस ब्रोकर को अपने सर्विस के लिए ब्रोकरेज मिलता है । सामान्यतः ये ब्रोकरेज एक से दो प्रतिशत ही होता है । परंतु एक लम्बे अवधि के निवेश में काफ़ी बड़ा अंतर बना देता है । ब्रोकर अपनी ब्रोकरेज सर्विस में, आपको फ़ंड में निवेश और उसमें किसी बदलाव से सम्बंधित सलाह देता रहता है और ब्रोकर समय-समय पर आपको फ़ंड बदलने की सलाह भी दे सकते है ।
डायरेक्ट फ़ंड (Direct Fund)
डायरेक्ट फ़ंड को निवेशक सीधे म्यूचूअल फ़ंड कम्पनी यानी असेट मैनेगजमेंट कम्पनी से ख़रीदता है । इसमें कोई ब्रोकर या बिचौलिया नहीं होता है । जिसके चलते इस फ़ंड का एक्स्पेन्स रेसीयो कम हो जाता है और इसमें रिटर्न ज़्यादा मिलता है ।
रेगुलर फ़ंड के क्या फ़ायदे हैं ?
वैसे तो रेगुलर फ़ंड में इक्स्पेन्स रेसीयो ज़्यादा और रिटर्न थोड़ा कम होता है परंतु उसके कुछ अपने फ़ायदे भी है
सुविधा
म्यूचुअल फंड में निवेश करना उतना आसान नहीं है जितना दिखता है। एक निवेशक को जोखिम और वित्तीय जरूरतों के आधार पर अपनी प्रोफ़ाइल का आकलन करना होगा। फिर म्यूचुअल फंड खोजें जो इस मानदंड में फिट बैठता है। और अंत में, म्यूचुअल फंड में निवेश करें। यह सब एक समय लेने वाली प्रक्रिया है। एक मध्यस्थ को मौजूदा म्यूचुअल फंड का ज्ञान होगा। और निवेशकों के प्रोफाइल के आधार पर सबसे अच्छा फिट खोजने में मदद करेगा। दूसरी ओर, प्रत्यक्ष योजना में इसका अभाव है। नतीजतन, एक नियमित योजना में निवेश करना सुविधाजनक है।
पेशेवर सलाह
म्यूचूअल फ़ंड के सलाहकार (ब्रोकर) के पास म्यूचुअल फंड के स्कीम से जुड़ी हुई सारी टेक्निकल जानकारी होती है और इसलिए उनको आपके सबसे अच्छा म्यूचूअल फ़ंड खोजने के लिए आसानी होती है। यही नहीं कोई भी निवेश, हमेशा निवेशक के जोखिम लेने के स्तर के हिसाब से होता है और इस मामले में म्यूचूअल फ़ंड सलाहकार (ब्रोकर) आपकी मदद कर देते है। एक योग्य म्यूचूअल फ़ंड सलाहकार अपनी निवेश यात्रा के दौरान निवेशकों का मार्गदर्शन कर सकता है और यहां तक कि उच्च रिटर्न हासिल करने के लिए उन्हें बाजार का ज्ञान भी प्रदान करता है। तो, केवल एक नियमित योजना में पेशेवर सलाह के लिए विकल्प होता है। हालांकि, एक सीधी योजना में, निवेशक को अपने ज्ञान पर निर्भर रहना पड़ता है।
नियमित पोर्टफोलियो की निगरानी और समीक्षा
बाजार हमेशा बदलता रहता है और ऐसे में एक निवेशक के रूप में, बाजार के साथ नियमित रूप से जुड़े रहना मुश्किल होता है। एक नियमित योजना में, म्यूचूअल फ़ंड सलाहकार (ब्रोकर) बाजार का ध्यान रखते हैं और नियमित रूप से अपने ग्राहक के पोर्टफोलियो की निगरानी करते हैं। आवश्यकतानुसार, वे आवश्यकतानुसार आपके पोर्टफोलियो में बदलाव करने की भी सलाह देते हैं। प्रत्यक्ष योजना यानी डायरेक्ट स्कीम में, निवेशक को स्वयं अपने पोर्टफोलियो की निगरानी के लिए समय निकालना पड़ता है।
मूल्य वर्धित सेवाएं
म्यूचूअल फ़ंड सलाहकार (ब्रोकर) निवेशकों की सुविधा के लिए कुछ अतिरिक्त सेवाएं प्रदान करते हैं। जैसे कि निवेशक के निवेश का रिकॉर्ड रखना, आयकर (Income Tax) दाखिल करने के दौरान कर (Tax) का प्रमाण देना, टैक्स में छूट के लिए निवेश के दौरान सलाह देना इत्यादि सुविधाये प्रदान करना,। ये सभी सेवाएं प्रत्यक्ष योजनाओं (डायरेक्ट स्कीम) में उपलब्ध नहीं हैं। दूसरी ओर, एक नियमित योजना इन सभी मूल्य वर्धित सेवाओं के साथ आती है।
डायरेक्ट म्यूचूअल फ़ंड के फ़ायदे
जैसे कि हमने अभी देखा की रेगुलर फ़ंड में निवेश करने से फ़ायदे भी है परंतु हमें लगता है की थोड़ी बहुत जानकारी रख कर आप भी ये सारी चीज़ें कर सकते है । अगर आप इस वेबसाइट पर रेगुलर पढ़ेंगे तो हो सकता है की आप भी एक दिन म्यूचूअल फ़ंड सलाहकार (ब्रोकर ) से ज़्यादा जानकर हो जाए ।
मोटे मोटे तौर पर देखे तो सिर्फ़ दो फ़ायदे होते है डायरेक्ट फ़ंड के – पहला की एक्स्पेन्स रेशीओ का कम होना और दूसरा रिटर्न का अधिक होना । जो की एक दूसरे से जुड़ी हुई है । क्योंकि डायरेक्ट फ़ंड में म्यूचूअल फ़ंड को किसी बिचौलियों को पैसे नहीं देना होता है और यही पैसे निवेशको को अधिक रिटर्न के रूप में दिखायी देता है। तो चलिए जानते है की एक्स्पेन्स रेसीयो क्या होता है और ये म्यूचूअल फ़ंड के रिटर्न पर कितना प्रभाव डालता है ।
आसान भाषा में, एक्स्पेन्स रेसीयो ही म्यूचूअल फ़ंड में पैसे जमा करने की फ़ीस होती है जो की अप्रत्यक्ष रूप से लिए जाता है ।जैसे कि हमने म्यूचूअल फ़ंड के बारे में बताते समय यह बताया था कि म्यूचूअल फ़ंड का एक मैनेजर होता है जो इसमें जमा किए गये पैसे को निवेश की देख रेख करता है और भी लोग म्यूचूअल फ़ंड को व्यवस्थित करने के लिए लगे होते है तो इन सब में जो भी खर्च आता है उसको म्यूचूअल फ़ंड कम्पनी एक्स्पेन्स रेसीयो के ज़रिए बताती है। जैसे कि अगर 1 लाख के फ़ंड की देख-रेख करने के लिए 1 हज़ार रुपए का खर्च आ रहा है तो म्यूचूअल फ़ंड कम्पनी इसके लिए एक्स्पेन्स रेसीयो 1% बताएगी।
उदाहरण के लिए मैंने SBI Bluechip Fund के डायरेक्ट और रेगुलर फ़ंड के इक्स्पेन्स रेसीयो के अंतर को देख सकते है
ये तुलना https://www.mutualfundindia.com/ पर १२ जून २०२० को किया गया है । इस तरीक़े आप देख सकते है की दायी ओर डायरेक्ट फ़ंड का इक्स्पेन्स रेसीयो सिर्फ़ 1.03% है जब की रेगुलर फ़ंड का इक्स्पेन्स रेसीयो 1.89% है ।ये 0.86% का अंतर लम्बी अवधि में एक बड़ा अंतर बन जाता है। इसको समझने के लिए इन्हीं दोनो फ़ंडो की तुलना कर लेते है ।
ऊपर दिए गये दोनो ही रिटर्न की गणना १२ जून २०२० को https://www.moneycontrol.com/ पर की गयी है । अब आप देख सकते है कि कैसे सिर्फ़ 50000 रुपए के निवेश पर सिर्फ़ 7 साल में ही 5920.13 रुपए का अंतर आ गया और अगर ये अंतर लम्बे अवधि में और ज़्यादा हो जाएगा।
अब उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कोई XYZ फ़ंड सालाना 15% रिटर्न दे रहा है परंतु अगर रेगूलर फ़ंड का एक्सपेंस रेसीयो 1.90% है और डायरेक्ट फ़ंड का इक्स्पेन्स रेशीओ 1.04 % है तो 25 साल में बहुत ही बड़ा अंतर हो जाता है ।
यह तस्वीर https://coin.zerodha.com/ से ली गयी है । जैसे कि आप ऊपर दिए गये तस्वीर में साफ़ दिखायी दे रहा है की आप 25 साल में डायरेक्ट फ़ंड से 6.33 लाख ज़्यादा रिटर्न कमा पाएँगे ।
निष्कर्ष
अभी तक की तुलना से ये तो साफ़ साफ़ दिख रहा है की अगर हम डायरेक्ट फ़ंड में निवेश करेंगे तो हमें ज़्यादा रिटर्न मिलेगा । लेकिन इसके साथ यह भी ध्यान रखे कि आपको सही फ़ंड का चुनाव करना भी आना चाहिए। इसके लिए जैसे की हमने पहले भी कहा है कि समय के साथ थोड़ा-थोड़ा सिखते सिखते रहिए और कुछ समय में आप भी सही फ़ंड चुनना जान जाएँगे ।